निबंध अवधारणा एवं स्वरूप
निबंध अवधारणा एवं स्वरूप
निबंध : परिभाषा
किसी भी साहित्य रूप को परिभाषित करना कठिन होता है| निबंध विधा के संबंध में भी ऐसा ही है| निबंध को परिभाषित में बांधना कठिन ही है | निबंध अपने शाब्दिक अर्थ के विपरीत बंधनहिन् है | अंग्रेजी एस्से ( essay ) का शाब्दिक अर्थ ” प्रयास ” ||है और उसे भी परिभाषित कर पाना कठिन है | इसलिए अंग्रेजी में यही कहा गया है कि निबंध निबंधकार की कृति है, कारण यह भी है कि इस ‘प्रयास’ के अंतर्गत छोटी – बड़ी सरल गंभीर गद्य – पद्य में लिखी हुई अनेक प्रकार की रचनाएं आ जाती है, जिनके समान लक्षणों का निरूपण प्राय : असंभव है अस्तु ,निबंध का अर्थ अत्यंत विस्तृत है |
पाश्चात्य विद्वान जॉनसन के अनुसार – ” निबंध मुक्त मन की मौन” , अनियमित, अपक्व – सी रचना, न की नियमबध्व और व्यवस्थित कृति है | अतः यह कहा जा सकता है कि निबंध में कलात्मक परिष्कार का अभाव रहता है | उसमें लेखक स्वछता पूर्वक अपने मन की बात कर सकते हैं, जिसमें उसे मनमानी उछल – कूद करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है | वह किसी विधि , पद्धति विषय या विचार का बंधन नहीं मानता |
निबंध की उक्त परिभाषा और विशेषताओं के साथ फ्रांसीसी लेखक माइकल दी माउंटेन तथा अंग्रेजी में अब्राहम काउलि , रिचर्ड स्टील और जोसेफ एडिसन की कृतियों का भी विशेष ध्यान रखा गया है | निबंध के लक्षण में स्वतंत्रता, आडम्बरहीनता तथा घनिष्ठा और आत्मीयता के साथ लेखक के वैयक्तिक एवं आत्मनिष्ठ दृष्टिकोण का भी उल्लेख किया जाता है | लेकिन उक्त सभी लक्षण सभी लेखको की रचना में संग्रह रूप से मिल जाए, यह संभव नहीं लगता और ना उसकी व्यवस्था का प्रयास लेखक करता है | उसकी अनियमितता में भी एक नियम है और उसकी और अव्यवस्था में भी एक व्यवस्था रहती है | अतः निष्कर्ष रूप में यह कहना अधिक समीचीन होगा निबंध ऐसी गद्द विद्या है जिसने लेखक अपने विचारों के साथ उनमुक्त रूप से प्रभावित अथवा संचालित होने के लिए मुक्त है | यही कारण है कि निबंधकार के लेखकीय व्यक्तित्व की झलक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष निबंध में मिल जाती है |
हां दृश्यतब्य यह भी है कि ‘ लेख में निजता ‘ अपनापन और मैं की अभिव्यक्ति नहीं होती, क्योंकि लेख में निर्वेव्यक्ति ढंग किसी विषय का विवेचन करता है, परंतु अपना पांडित्य प्रदर्शन नहीं करता है | लेखक सामान्य ढंग से अपने विचार सहज अभिव्यक्ति के रूप में करता है ,जबकि निबंध में निबंधकार का पांडित्य स्थापित रहता है |
| एक विषय दृष्टि और ध्यान देने योग्य है, लेख में समायिक दृष्टि की प्रधानता रहती है, उसके साथ स्थानीय महत्व का कोई प्रश्न नहीं रहता है| सामयिकता के निष्कर्ष पर लेख में तथ्यों , तिथियों एवं आंकड़ों का बाहुल्य रहता है तथा औपचारिकता का समावेश किया जाता है |
निबंधकार को निबंध लिखने के लिए कलात्मक प्रयास के स्थान पर अपनी स्वयं की मौलिक सोच को विस्तार देना होता है अतः निबंध एक ऐसी कलाकृति बन जाता है जिसकी नियम लेखक द्वारा ही आविस्कृत होते हैं |इसी प्रकार सहज सरल आडम्बरहींन आत्माभीव्यक्ति के लिए एक परिपक्व और विचारशील गंभीर व्यक्तित्व की अपेक्षा होती है| यदि उसके कृतित्व में परिपक्वता का अभाव सा दिखता है, परंतु पाठक के साथ लेखक की निकटता और आत्मीयता साहित्य रूप की दृष्टि से हिंदी में निबंध विधा आधुनिक युग की देन है | नि + बंध से यही किया जाता है कि अच्छी तरह विचारों को बांधकर को शुद्ध करना ही निबंध है यानी प्रबंधन के स्तर पर निबंधन |
इस प्रकार निबंध के प्रमुख लक्षणों की सूची भी प्रस्तुत की जा सकती है जिसमें प्रमुख लक्षण निम्न होते हैं |
1 . स्वच्छंद चिंतनवृत्ति 2 . सरलता
2 . आडम्बरहीनता 3 . धनिष्ठा
4 . वैयक्तिकता 4 . आत्मीयता
7 . मौलिकता 8 . विचार परिपक्वता
9 . प्रगल्भता 10 . वचन – भागिमा
11 . संक्षिप्ता 12 . व्यंजकता
लेकिन निबंधकार की विजेता के स्तर पर निबंध के सभी लक्ष्यों की समाहिती आवश्यक नहीं होती है, पर अब उनका लक्ष्य निबंध में से लुप्त होगा और कौन सा लक्षण प्रविष्ट हो जाएगा , पूर्व में ही त्तय नहीं होता है | कभी-कभी व्यंगय से प्रविष्टि हो जाता है, जो उसका मूल लक्षण नहीं है|
निबंध – वर्गीकरण
निबंधनों का वर्गीकरण सामान्यत उसमें निहित दृष्टियो एवं लक्षणों से किया जाता है
अस्तु वर्गीकरण का स्वरूप निम्नांकित है –
1 विचार प्रधान 2 . भावप्रधान
3 . प्रतीकात्मक 4. कथानात्मक
- मनोवैज्ञानिक 6 . संस्मरणात्मक
7 . हास्यव्यंगत्मक 8 . वर्णात्मक
इसके कई उपभेद भी किए जा सकते हैं ! वाद विषयक निबंध भी उपभेदों में संभव है ।
निबंध लेखन के लिए अनिवार्य बिंदु
किसी भी निबंध लेखन में निम्नांकित चिंतन विंदु अनिवार्य रूप से होते हैं
क. अध्ययनशीलता ख. सूक्ष्म निरीक्षण वृति
ग. अनुभवशीलता घ . कल्पनाशीलता
ङ. निवैरयक्तिकता
तभी लेखक आत्म निष्ठ होकर विषय प्रस्तुति में निवैरयक्तिकता होता हैं। तभी वह अपनी निबंध रचना की रूपरेखा निम्नलिखित रुप में तय कर पाता है-
अ . कथ्य आ . स्थितिया
इ . चिंतन – लक्ष्य ई . उद्देश्य
अतः उक्त आधारों पर निबंध कार अपने लेखन कौशल को व्यापक बना सकता है इसके साथ ही पाठक और रुचि के साथ लेखक का सामंजस्य भी अनिवार्य है । लेखक की ओर से पूरी संवेदनशीलता और सर्जनात्मक का पुट जब तक निबंध में समाहित नहीं किया जाता, उसकी पठनियता की कसौटी पर निबंध खरा नहीं उतरता ।
निबंध के तत्व
निबंध के जितने विषय हो सकते हैं उतने ही प्रकार भी होते हैं एक ही विषय पर भिन्न-भिन्न दृष्टिओं से निबंध लिखे जा सकते हैं और यही नहीं लेखन शैली के आधार पर वर्णनात्मक विवरणात्मक भावात्मक विचारात्मक निबंध कोटिया भी हो सकती है पर इन सभी प्रकार के निबंधों में मूल तत्वों में भिन्नता नहीं होती है किसी भी निबंध में प्रमुखत दो तत्व होते हैं —
क . कथ्य ख . शिल्प
कथ्य में विचार विषय वस्तु समाहित होती है और कभी-कभी संदर्भ सामग्री का भी संकेत निहित हो सकता है | जबकि शिल्प तत्व में प्राय: भाषा और शैली की चर्चा सम्मिलित होती है |
निबंधकार को पहल यह करनी होती है कि जिस विषय पर निबंध लिखा जाना है, उससे संबंधित आवश्यक विषय सामग्री एकत्र किया जाए और अपेक्षानुसार उसको क्रमबद्ध रखा जाए तथा चिंतन मनन की प्रक्रिया में उसे जितना संभव हो, परिष्कृत कर लिया जाए तथा तत्व क्रम में विषयनुरूप भाषा – शैली अपनाने की अपेक्षा की जाती है |