NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम्
NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम्
अभ्यासः (Exercise)
प्रश्नः 1.
पाठे दत्तं गीतं सस्वरं गायत। (अठ में दिए गए गीत को स्वर में गाइए।)
उत्तरम्:
छात्र सुस्वर में गीत को गाएँ।
प्रश्नः 2.
अधोलिखिताना प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर एक पद में दीजिए-)
(क) स्वकीयं साधनं किं भवति?
(ख) पथि के विषमाः प्रखरा:?
(ग) सततं किं करणीयम्?
(घ) एतस्य गीतस्य रचयिता कः?
(ङ) सः कीदृशः कविः मन्यते?
उत्तरम्:
(क) बलम्।
(ख) पाषाणाः।
(ग) ध्येय-स्मरणम्।
(घ) श्रीधरभास्कर-वर्णेकरः।
(ङ) राष्ट्रवादी।
प्रश्नः 3.
मजूषातः क्रियापदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-(मञ्जूषा से क्रिया पद चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
निधेहि, विधेहि, जहीहि, देहि, भज, चल, कुरु |
यथा-त्वं पुरतः चरणं निधेहि।
(क) त्वं विद्यालयं …………………..|
(ख) राष्ट्रे अनुरक्तिं …………………..|
(ग) मयं जलं …………………..|
(घ) मूढ! ………………….. धनागमतृष्णाम्।
(ङ) ………………….. गोविन्दम्।
(च) सततं ध्येयस्मरणं …………………..|
उत्तरम्:
(क) चल
(घ) जहीहि।
(ख) विधेहि।
(ङ) भज।
(ग) देहि।
(च) कुरु।
प्रश्नः 4.
(अ) उचितकथनानां समक्षम् ‘आम्’, अनुचितकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-(उचित कथनों के सामने ‘आम्’ तथा अनुचित कथनों के सामने ‘न’ ऐसा लिखिए-)
उत्तरम्:
प्रश्नः 5.
(आ) वाक्यरचनया अर्थभेदं स्पष्टीकुरुत-(वाक्य रचना द्वारा अर्थ-भेद स्पष्ट कीजिए-)
परितः – पुरतः
नगः – नागः
आरोहणम् – अवरोहणम्
विषमाः – समाः
उत्तरम्:
परितः (चारों ओर) – ग्रामं परितः जनाः वसन्ति।
पुरतः (आगे) – सीतायाः पुरतः रामः चलति।
नगः (पर्वत) – हिमालयः संसारे प्रसिद्धः नगः अस्ति।
नागः (सर्प) – शेषनागः सर्वोच्चः भवति।।
आरोहणम् (चढ़ाई) – पर्वतस्य आरोहणम् सुखदं भवति।
अवरोहणम् (उतराई) – पर्वतस्य अवरोहणं रोमांचकं भवति।
विषमाः (असमान) – पर्वतस्य मार्गाः विषमाः एव भवन्ति।
समाः (समान) – राजपुत्राः नृपेण समाः सन्ति।
प्रश्नः 6.
मजूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत।-(मञ्जूषा से अव्यय पद चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
एव, खलु, तथा, परितः, पुरतः, सदा, विना |
(क) विद्यालयस्य ……………………… एकम् उद्यानम् अस्ति।
(ख) सत्यम् ……………………… जयते।।
(ग) किं भवान् स्नानं कृतवान् ……………………… ?
(घ) सः यथा चिन्तयति ……………………… आचरति।
(ङ) ग्राम ……………………… वृक्षाः सन्ति।
(च) विद्यां ……………………… जीवनं वृथा।
(छ) ……………………… भगवन्तं भज।
उत्तरम्:
(क) पुरतः
(ख) एव
(ग) खलु
(घ) तथा
(ङ) परितः
(च) विना
(छ) सदा
प्रश्नः 7.
विलोमपदानि योजयत-(विलोम पदों का मिलान कीजिए-)
पुरतः – विरक्तिः
स्वकीयम् – आगमनम्।
भीतिः – पृष्ठतः
अनुरक्तिः – परकीयम्
गमनम् – साहसः
उत्तरम्:
पुरतः – पृष्ठतः
स्वकीयम् – परकीयम्
भीतिः – साहसः
अनुरक्तिः – विरक्तिः
गमनम् – आगमनम्।
प्रश्नः 8.
(अ) लट्लकारपदेभ्यः लोट्-विधिलिङ्लकारपदानां निर्माणं कुरुत-(लट् लकार के पदों से लोट् और विधिलिङ् लकार के पदों का निर्माण कीजिए-)
उत्तरम्:
प्रश्नः 9.
(आ) अधोलिखितानि पदानि निर्देशानुसारं परिवर्तयत-(निम्नलिखित पदों को उदाहरण अनुसार परिवर्तित कीजिए-)
यथा- गिरिशिखर (सप्तमी-एकवचने) – गिरिशिखरे
पथिन् (सप्तमी-एकवचने) ……………………..
राष्ट्र (चतुर्थी-एकवचने) ……………………..
पाषाण (सप्तमी-एकवचने) ……………………..
यान (द्वितीया-बहुवचने) ……………………..
शक्ति (प्रथमा-एकवचने)
पशु (सप्तमी-बहुवचने) ……………………..
उत्तरम्:
पथि, राष्ट्राय, पाषाणे,
यानानि, शक्तिः , पशुषु,
अतिरिक्त-अभ्यासः
प्रश्नः 1.
पद्यांशं पठित्वा अधोदत्तान् प्रश्नाम् उत्तरत-(पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-)
पथि पाषाणा विषमाः प्रखराः।
हिंस्राः पशवः परितो घोराः॥
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो ……………………..॥
I. एकपदेन उत्तरत- (एक पद में उत्तर दीजिए-) |
(i) पथि विषमाः के सन्ति? ……………………..
(ii) पशवः कीदृशाः सन्ति? ……………………..
(iii) दुष्करं किं भवति? ……………………..
(iv) पुरतः किं निधेयम्? ……………………..
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए-)
पथि किं किं काठिन्यं वर्तते? ………………………….
III. भाषिककार्यम् (भाषा-कार्य)
(i) पर्यायपदम् चित्वा लिखत
(क) सर्वदा = ……………….
(ख) मार्गे = ……………….
(ग) अभितः = ……………….
(ii) सन्धिविच्छेदं कुरुत
(क) यद्यपि = ………………. + ……………….
(ख) सदैव = ………………. + ……………….
(iii) विशेषणपदं चित्वा लिखत-‘सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
(iv) विपर्यायं (विलोम) लिखत
(क) समाः = ……………….
(ख) अतीव सुकरम् = ……………….
(ग) पृष्ठतः = ……………….
(v) एकवचने परिवर्तयत–’पथि पाषाणाः विषमाः, प्रखराः’।। ……………….
उत्तरम्:
I.
(i) पाषाणा:
(ii) हिंस्रा:
(iii) गमनम्
(iv) चरणम्
II. पथि विषमाः, प्रखराः पाषाणाः सन्ति, परितः च हिंस्रा: घोराः पशवः, अतः गमनम् दुष्करम्।
III.
(i)
(क) सदैव
(ख) पथि
(ग) परितो (परितः)
(ii)
(क) यदि + अपि
(ख) सदा + एव
(iii) सुदुष्करम्
(iv)
(क) विषमाः
(ख) सुदुष्करम्
(ग) पुरतः
(v) पथि पाषाणः विषमः, प्रखरः।
प्रश्नः 2.
शब्दार्थान् परस्परं मेलयत-(शब्दार्थों का परस्पर मेल कीजिए-)
अनुरक्तिम् – पर्वतः
गिरिशिखरे – स्वगृहम्
नगः – त्यज
सततम्। – कुरु
निजनिकेतनम् – पर्वत शृङ्गे
विधेहि – स्नेहम्
जहीहि – निरन्तरम्
उत्तरम्:
अनुरक्तिम् = स्नेहम्, गिरिशिखरे = पर्वत श्रृंगे, नगः = पर्वतः, सततम् = निरन्तरम्, निजनिकेतनम् = स्वगृहम्, विधेहि = कुरु, जहीहि = त्यज।।
प्रश्नः 3.
लट्लकारपदानि लोट्-विधिलिङ्लकारे परिवर्तयत-(लट् लकार के पद लोट् तथा विधि लिंङ में परिवर्तित कीजिए-)
उत्तरम्:
(i) अस्तु, स्यात्
(ii) करवाणि, कुर्याम्
(iii) लिखन्तु, लिखेयुः
(v) पठ, पठे:
(v) खादाम, खादेम
(vi) धावतम्, धावत
(vii) गायताम्, गायेताम्।
प्रश्नः 4.
वाक्य-प्रयोगम् कुरुत- (वाक्य में प्रयोग कीजिए-)
(i) घोरः
(ii) पुरतः
(iii) साधनम्
(iv) गमनम्।
उत्तरम्:
(i) व्याघ्रः घोरः पशुः वर्तते।
(ii) भवनस्य पुरतः विशाला वाटिका शोभते।
(iii) साधनम् विना कार्यसिद्धिः कथं भवेत्?
(iv) विषमे मार्गे गमनम् सुकरम् नास्ति।
बहुविकल्पीयप्रश्नाः
प्रश्नः 1.
प्रदत्तविकल्पेभ्यः उचितपदं चित्वा वाक्यपूर्ति कुरुत-(दिए गए विकल्पों से उचित पद चुनकर रिक्त स्थान भरिए-)
(क)
1. सदैव ……………………….. निधेहि चरणम्। (परितः, पुरतः, सर्वत:)
2. विनैव यानम् ……………………….. । (नागारोहरणम्, नगारोहणम्, नगावरोहणम्)
3. ……………………….. राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम्। (देहि, विधेहि, जहीहि) |
4. कुरु कुरु सततं ……………………….. (निजनिकेतनम्, ध्येय-स्मरणम्, सुदुष्करम्)
5. जहीहि भीतिं भज भज ……………………….. । (साधनम्, गमनम्, शक्तिम)
उत्तरम्:
(क)
1. पुरतः
2. नगारोहणम्
3. विधेहि
4. ध्येय-स्मरणम्
5. शक्तिम् ।
(ख)
1. भो बालकाः! मार्गे सावधानं ……………………….. । (चल, चलतम्, चलत)
2. पुत्रि, ……………………….. विना बहिः मा गच्छ। (छत्रः, छत्रम्, छत्राय)
3. ……………………….. स्नेहः कर्तव्यः। (भ्रातृ, भ्रातरम्, भ्रातरि।)
4. ……………………….. दयां कुरु।। (पशुम्, पशौ, पशुः)
5. कार्यम् इदम् ……………………….. खलु। (सुकर, सुकरम्, सुकरः)
उत्तरम्:
(ख)
1. चलत
2. छत्रम्
3. भ्रातरि
4. पशौ
प्रश्नः 2.
शुद्धं शब्दरूपं रिक्तस्थाने लिखत-(शुद्ध शब्दरूप रिक्त स्थान में लिखिए)
1. गति – प्रथमा एकवचनम् ……………………….. । (गति, गतिः, गती)
2. सुमति – सम्बोधनम्, एकवचनम् ……………………….. । (सुमति, सुमतिः सुमते)
3. बसयान – द्वितीया बहुवचनम् ……………………….. । (बसयाना:, बसयानान्, बसयानानि)
4. शिशु – चतुर्थी एकवचनम् : ……………………….. ।। (शिश्वे, शिशवे, शिशुवे)
5. तरु – प्रथमा बहुवचनम्। ……………………….. । (तर्वः तरुवः, तरव:)
उत्तरम्:
1. गतिः।
2. सुमते
3. बसयानानि
4. शिशवे
5. तरवः .
पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson)
श्रीधरभास्कर वर्णेकर ने अपने इस गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्वान किया है। श्रीधर राष्ट्रवादी कवि हैं जिन्होंने इस गीत के द्वारा जागरण और कर्मठता का सन्देश दिया है।
पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ |
(क) चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्॥
अन्वय : चल, चल पुरतः चरणम् निधेहि। सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।
शब्दार्थ : चल-चलो। पुरतः-आगे। निधेहि-रखो। चरणम्-कदम। सदैव-हमेशा ही। सरलार्थ : चलो, चलो। आगे कदम रखो। सदा ही आगे कदम रखो।
(ख) गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्॥
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो ……………………….. ॥
अन्वय : ननु गिरिशिखरे निजनिकेतनम्, यानं विना एव नगारोहणम्। स्वकीयं बलं साधनम् भवति, सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।।
शब्दार्थ : गिरिशिखरे-पर्वत की चोटी पर। ननु-निश्चय से। निजनिकेतनम्-अपना निवास। विनैव-बिना ही। यानम्-वाहन। नगारोहणम्-पर्वत पर चढ़ना। बलम्-शक्ति (ताकत)। स्वकीयम्-अपना। साधनम्-साधन (माध्यम)।
सरलार्थ : निश्चय (निश्चित रूप) से पर्वत की चोटी पर अपना घर है। अतः बिना वाहन के ही पहाड़ पर चढ़ना है। (उस समय तो) अपना बल ही अपना साधन होता है। इसलिए सदा ही आगे कदम रखो।
(ग) पथि पाषाणा विषमाः प्रखराः।
हिंस्राः पशवः परितो घोराः॥
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो ……………………….॥
अन्वयः पथि विषमाः प्रखराः (च) पाषाणाः, परितः हिंस्रा: घोराः पशवः (भ्रमन्ति)। यद्यपि गमनम्। सुदुष्करं खलु (अस्ति), सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।
शब्दार्थ : पथि-मार्ग में। पाषाणाः-पत्थर। विषमाः-असामान्य। प्रखराः-तीक्ष्ण, नुकीले। हिंस्राः-हिंसक। पशवः-पशु-पक्षी। परितः-चारों ओर। घोराः-भयंकर, भयानक। सुदुष्करम्-अत्यन्त कठिनतापूर्वक | साध्य। खलु-निश्चय से। यद्यपि-जबकि। गमनम्-जाना (चलना)।
सरलार्थ : रास्ते में विचित्र (अजीब) से नुकीले और ऊबड़-खाबड़ पत्थर तथा चारों ओर भयानक चेहरे और हिंसक व्यवहार वाले पशु घूमते हैं। (अत:) निश्चित रूप से जबकि वहाँ जाना कठिन है। (फिर भी) हमेशा ही आगे-आगे कदम रखो।
(घ) जहीहि भीतिं भज भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम्॥
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो ……………..
अन्वयः भीतिं जहीहि शक्तिम् भज, तथा राष्ट्रे अनुरक्तिम् विधेहि। सततं ध्येय-स्मरणम् कुरु कुरु, सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।। ।
शब्दार्थ : जहाँहि-छोड़ो, छोड़ दो। भीतिम्-डर को। भज-भजो, जपो। शक्तिम्-शक्ति को। विधेहि-करो। राष्ट्रे-देश में। तथा-उसी प्रकार से। अनुरक्तिम्-प्रेम, स्नेह। कुरु-करो। सततम्-लगातार। ध्येय-स्मरणम्-उद्देश्य (लक्ष्य) का स्मरण।
सरलार्थ : डर को छोड़ दो और ताकत को याद करो। उसी प्रकार अपने देश से प्रेम (भी) करो। (और) सतत् अर्थात् लगातार अपने उद्देश्य को याद रखो। सदैव आगे (ही) कदम रखो।