आचार्य नरेंद्र देव : व्यक्ति एवं सृजन
आचार्य नरेंद्र देव : व्यक्ति एवं सृजन
हिंदी साहित्य में निबंध बहुत ही परिमार्जित एवं प्रांजल गद्य और हिंदी निबंध साहित्य क्षेत्र में आचार्य नरेंद्र देव रुढियो के त्याग और प्रगतिशील तत्वों को स्वीकार करने का जबरदस्त आग्रह रखने वाले निबंधकार के रूप में माना है जिनकी पहचान करें शिक्षा शास्त्री के रूप में भी रही है |
भारत के इस शिक्षा शास्त्री का जन्म 31 अक्टूबर अट्ठारह सौ नवासी को उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हुआ था | अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे वकालत करने लगे और सन 1920 में लोकमान बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए अपना वकालत का पेशा छोड़ दिया तथा शिव प्रसाद गुप्त द्वारा स्थापित काशी विद्यापीठ में उन्होंने सन 1921 से अध्यापन आरंभ कर दिया | बाद में वही पर हुए आचार्य नियुक्त हो गए तथा काशी विद्यापीठ के कुलपति भी रहे | कालांतर में वह लखनऊ और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पदों पर भी रहे | 1934 में इन्होंने जयप्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया, तथा अन्य सहयोगियों के साथ कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की तथा उसके प्रवक्ता भी रहे |
आचार्य नरेंद्र देव ई गन्ना देश में उच्च कोटि के शिक्षा शास्त्रियों में होती है | देश की शिक्षा समस्या पर उन्होंने बहुत कुछ लिखा है | उनका दृष्टिकोण एक क्रियात्मक बुद्धि वादी है | आधुनिक दृष्टिकोण के अनुरूप शिक्षा की उपयोगिता पर भी उनके विचार मिलता है | उन्होंने परंपरा से प्राप्त हिंदी के प्रति श्रद्धा रखते हुए उसमें इतिहास, राजनीति, समाजशास्त्र से संबंधित विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं | इतिहास और राजनीति शास्त्र में उन्होंने पांडित्य प्राप्त था, उनके व्यक्तित्व में विशुद्ध, विद्वता, गंभीर विवेचन एवं सच्ची जनसेवा की भावना कूट-कूट कर हरी थी |
आचार्य नरेंद्र देव ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक साहित्य शिक्षा एवं संस्कृति में स्वम् अपने विचारों का उल्लेख किया है कि – भारतीय समाज में महान परिवर्तन होने वाले हैं | देश में नवजीवन हिलोरे ले रही है | भारत की अवरुद्ध जीवन शक्ति अब फिर वेगवती कुकर चली है | भारत का नया मानव अपने सपने सार्थक करने को निकल पड़ा है | इस नवजीवन प्रवाह को रोकने का प्रयत्न निरर्थक है | इसे रोकने का प्रयत्न सफल नहीं हो सकता है | इस तरह सामाजिक शक्ति नष्ट करने से व्यक्तियों तथा समूह को रोकना है | समाजिक शक्ति की दिशा निर्धारित करनी है, उसका नियंत्रण करना है | पुराने आदर्शों से आज पथ निर्देश नहीं हो पाता | पुरानी परंपरा से आज सहारा नहीं मिल पाता | आज नए नेतृत्व की आवश्यकता है | संस्कृति चित्रभूमि की खेती है |
आचार्य नरेंद्र देव ने इतिहास राजनीति समाजशास्त्र संबंधी विविध प्रकार की पुस्तकों के साथ ही बौद्ध दर्शन राष्ट्रीयता और समाजवाद उनके अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं जिनमें बौद्ध दर्शन पर साहित्य अकादमी ने पुरस्कार घोषित किया है | पाठ्यपुस्तक में संकलित विविधता में एकता निबंध हिंदू धर्म की सर्वग्राही समन्वय सिलता का अंत रंग विवेचन प्रस्तुत करता है | अनेक ऐतिहासिक उदाहरण देकर स्थितियों को प्रस्तुत करते हुए उन्होंने बताया है कि किसी भी धर्म की महत्ता को सहज रूप से स्वीकार कर लेने उसे संपूर्ण संपन्नता देने और उसके सार्वभौमिक तत्वों को अपने में शामिल करके भी उसमें अपने मौलिक रूप में समुद्र की भांति खेलने की अद्भुत क्षमता है |