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आजाद से अबुल कलाम का सफर | Part – 7

आजाद से अबुल कलाम का सफर | Part – 7

आजाद से अबुल कलाम का सफर | Part – 7

संस्था-निर्माता

आधुनिक भारत के इतिहास में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अनेक संस्थाओं के निर्माण के लिए याद किये जाएँगे। इनमें अधिकतर आज भी सक्रिय हैं और उन्नत अवस्था में हैं। आरंभ में उन्होंने शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की, फिर कला, संस्कृति और साहित्य को प्रोत्साहित करने वाली संस्थाओं का भी निर्माण किया। __सबसे पहले आजाद ने अपनी आरंभिक कर्म-भूमि कलकत्ता में 1914 में एक मदरसा स्थापित किया, जिसका नाम था “दारुल इरशाद”। यह अधिक समय तक नहीं चल सका, क्योंकि 1916 में आज़ाद को सरकार ने बंगाल से निष्कासित कर दिया था। 1916 से 1920 तक राँची-निवास की अवधि में उन्होंने एक अन्य मदरसा स्थापित किया, जो अपने बदले हुए रूप में आज भी कार्यरत

___ अक्टूबर, 1920 में, जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से अलग एक नए विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया की स्थापना का राष्ट्रवादी नेताओं ने निर्णय लिया, तो आज़ाद इस काम में शामिल रहे। कुछ समय पश्चात् इस संस्था को अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित करने में भी उनका सक्रिय योगदान रहा। आज भी जामिया मिल्लिया इस्लामिया के गेट नंम्बर-07 का नाम “बाबे आजाद” (आजाद द्वार) है।

जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कठिन परिस्थितियों में घिर गई, तो आजाद ने उसे जीवन-दान दिया। इस काम में डॉक्टर जाकिर हुसैन (जो बिहार के राज्यपाल भी रहे, देश के उप-राष्ट्रपति और राष्ट्रपति भी) ने पूरी तरह आजाद को सहयोग किया।

मौलाना आजाद ने शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित शिक्षा को प्राथमिकता दी। विज्ञान और आधुनिक प्रौद्योगिकी के महत्व को उन्होंने बहुत पहले से ही पहचाना था। मंत्री के रूप में मौलाना आजाद को शिक्षा के साथ विज्ञान और संस्कृति विभाग भी प्राप्त थे। चूँकि उन्होंने इस तथ्य को समझा था कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के बिना देश का आर्थिक विकास संभव नहीं है, अतः उन्होंने कृषि, औषधि-विज्ञान, अभियंत्रण, प्रौद्योगिकी और विज्ञान के लिए उच्च स्तरीय शिक्षा को महत्व दिया। इसके अच्छे परिणाम भी सामने आए। उनके मंत्रित्व काल में ही अभियंत्रण में स्नातक स्तर पर छात्रों की संख्या में डेढ़ गुना वृद्धि हुई। इसके साथ उन्होंने

ललित कलाओं को, सांस्कृतिक गतिविधियों को, इतिहास और विरासत को, प्राचीन धरोहरों की सुरक्षा, को भी अपनी कार्य-योजना में शामिल करके एक समग्र शिक्षा-व्यवस्था का विकास करने में पहल की।

उस समय देश में सड़कों के निर्माण की बहुत जरूरत थी। वैज्ञानिक प्रगति का लाभ देश के सभी भागों तक पहुँचाने के लिए यातायात की सुविधा अनिवार्य थी। अगर हम उस समय की स्थिति को तुलनात्मक ढंग से देखें, तो भारत में प्रति हजार व्यक्तियों के लिए 6 फ़र्लाग सड़क (1200 मीटर) भी उपलब्ध नहीं थी, जबकि इंग्लैन्ड में प्रत्येक हजार व्यक्ति पर लगभग साढ़े तीन मील से अधिक सड़क मौजूद थी। उनके प्रयासों से 1952 में सेन्ट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRRI) की स्थापना हुई, जिससे सड़क-निर्माण में प्रगति हुई और उनकी गुणवत्ता में भी वृद्धि हुई। इससे यातायात और परिवहन में भी सुविधा हुई।

1953 में सेन्ट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) की स्थापना हुई। इस संस्था ने सार्वजनिक भवनों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1953 में ही इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (EERI) की स्थापना हुई, जिससे विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक उपकरणों को बनाने में सुविधा हुई। __ खड़गपुर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेकनालॉजी (IIT) का प्रारंभ इंस्टीट्यूट ऑफ हायर टेकनालॉजी (IHT) के रूप में 1951 में हुआ था। इसमें कृषि विज्ञान भी उस समय पढ़ाया जाता था। मौलाना आजाद का मानना था कि देश में उद्योगों का विकास जितना हुआ है, उसकी तुलना में कृषि का विकास नहीं हुआ। इसलिए उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (IAR) (जिसकी स्थापना ब्रिटिश शासन काल में हो चुकी थी) के विकास के लिए आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराईं। इन सभी कार्यों के सुचारु रूप से संचालन में कौंसिल फॉर साइन्टीफिक ऐन्ड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) की निर्णायक भूमिका थी। इसकी स्थापना 1942 ई. में ही हो चुकी थी, मगर मौलाना आजाद ने इसे अधिक सक्रिय बनाया। __ इस प्रकार, देश के नवनिर्माण में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्व को समझने और इसका प्रभावशाली उपयोग करने में मौलाना आजाद का अविस्मरणीय योगदान रहा। ___ यह भी याद रखना जरूरी है कि इन सभी कार्यों में मौलाना आजाद को देश के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का पूर्ण समर्थन और सहयोग प्राप्त रहा। ____ भारत की समृद्ध विरासत और धरोहर की रक्षा के लिए भी उन्होंने प्रयास किए। 1949 में ही उन्होंने राष्ट्रपति भवन में संग्रहालय की स्थापना की। नई

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के निर्माण में भी उनका योगदान रहा। यहाँ भारतीय साहित्य और कला की अद्भुत मिसालें सुरक्षित हैं। जमीन के नीचे धरोहरों की जानकारी प्राप्त करने में पुरातत्व-शास्त्र के महत्व को वे जानते थे।

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) की स्थापना 1950 में की गई। आजाद ने अपना निजी पुस्तकालय भी इस संस्था को भेंट कर दिया था। सांस्कृतिक जीवन के विविध पहलुओं पर उनकी नजर थी। अतः इनके संपोषण के लिए भी महत्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना की गयी। 1953 में संगीत नाटक आकादमी, 1954 में साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी और 1954 में ही जयपुर में नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट की स्थापना इसके उदाहरण हैं।

पुस्तकालयों की उपयोगिता को भी मौलाना आजाद अच्छी तरह समझते थे। अलीपुर (कलकत्ता) में स्थित भारत के राष्ट्रीय पुस्तकालय की स्थापना में उनका योगदान था। पहले यह भवन कलकत्ता में भारत के वायसराय का निवास स्थल था। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना में भी उनकी निर्णायक भूमिका थी। इसकी स्थापना 1951 में हुई और इसमें UNESCO का भी सहयोग था। ___ शिक्षा की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए उन्होंने शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए निरंतर प्रयास किए।

मौलाना आजाद ने भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रति चेतना जगाने में तथा इसके व्यावहारिक उपयोग के लिए निरंतर प्रयास किए। अपने आरंभिक लेखों में उन्होंने भौतिकी, रसायन शास्त्र, प्राणी-विज्ञान, औषधि-विज्ञान आदि विषय पर विस्तार से लिखा ॥ उस समय अधिकतर धर्माचार्य इन विषयों को अच्छी तरह जानते भी नहीं थे। मगर मौलाना आजाद आधुनिक विचारों को अपनाने और दूसरों तक पहुँचाने में विश्वास रखते थे।

आज हम विज्ञान के युग में जी रहे हैं। विज्ञान का उद्देश्य प्रकृति की विशेषताओं को सही और विश्वसनीय ढंग से समझने से है। इसमें प्रयोगात्मक विधि अपनाई जाती है, जिससे हम अपनी जानकारी या परिकल्पना को प्रमाणित कर सकें। प्रौद्योगिकी इसी विज्ञान का व्यावहारिक रूप है। वैज्ञानिक प्रगति से मानव-जीवन के स्तर को बेहतर बनाने का काम प्रौद्योगिकी के माध्यम से ही होता है।

मौलाना आजाद के कार्यकाल में स्थापित कुछ महत्वपूर्ण संस्थाएँ हैं :

1. University Education Commission (1948)

2. Indian Council for Cultural Relations (1950)

3. Indian Institute of Technology (1951)

4. Delhi Public Library (1951)

5. Central Road Research Institute (1952)

6. Central Building Research Institute (1953)

7. University Grants Commission (1953)

8. Sangit Natak Akademi (1953)

9. Lalit Kala Akademi (1954)

10. Sahitya Akademi (1954)

11. National Gallery of Modern Art, Jaipur (1954)

मौलाना आजाद और पंडित नेहरू

– मौलाना आजाद और पंडित नेहरू परम मित्र थे और दोनों ने ही गांधीजी के नेतृत्व में अटूट विश्वास के साथ आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। इसी के साथ, दोनों ने आपसी ताल-मेल के साथ पूरी तन्मयता से स्वतंत्र भारत के निर्माण में भाग लिया था। सबसे बढ़कर वे दोनों भारत की समावेशी या गंगा-जमुनी संस्कृति के श्रेष्ठ उदाहरण थे। __पंडित नेहरू (जन्म 1889) से मौलाना आज़ाद (जन्म 1888) उम्र में कुछ ही बड़े थे। प्रधान मंत्री के रूप में नेहरू का स्थान उनसे ऊँचा था। नेहरू, मौलाना आज़ाद के बड़े होने और उनकी विद्वता के प्रशंसक थे और उन्हें ‘मीरे कारवाँ’ (पथ-प्रदर्शक) कहते थे, तो आज़ाद नेहरू को नये युग का अग्रदूत मानते थे।

राष्ट्रीय आंदोलन में मौलाना आजाद, पंडित नेहरू से कुछ पहले शामिल हुए। 1920 में ही खिलाफत आंदोलन के माध्यम से मौलाना आजाद उन राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ गए थे, जिनका उद्देश्य अंग्रेजों की अन्यायपूर्ण नीतियों का विरोध करना था। पंडित नेहरू 1921 में असहयोग आंदोलन के साथ राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुए। मौलाना आजाद 1923 में पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने, पंडित नेहरू ने 1929 में यह पद पहली बार संभाला। नेहरू की

अध्यक्षता में 1929 में पूर्ण-स्वराज का प्रस्ताव कांग्रेस ने पारित किया। मौलाना आजाद की अध्यक्षता में 1942 में कांग्रेस ने, भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया। 1932 में धरसाना नमक कारखाने के सत्याग्रह में मौलाना आज़ाद सक्रिय रहे, तो 1940 में “व्यक्तिगत सत्याग्रह’ में नेहरू सत्याग्रहियों की पहली पंक्ति में थे। ऐसे और भी कई दृष्टांत दिये जा सकते हैं, मगर उपर्युक्त बातों की चर्चा से यह स्पष्ट होता है कि ये दोनों महान नेता किस तरह एक-दूसरे के सहयोगी ही नहीं, सम्पूरक भी थे।

___1936 में कांग्रेस में समाजवादी विचारों को लेकर कुछ पारस्परिक मतभेद हुए, तो मौलाना आजाद ने पंडित नेहरू और सुभाष चंद्र बोस से सहमति व्यक्त की, जबकि गांधीजी का विचार इनसे भिन्न था। विचारों के बीच इस अंतर का कारण भी था। नेहरू और सुभाष वैज्ञानिक समाजवाद को मानते थे, जिसमें राज्य द्वारा आर्थिक असमानता को दूर करने की बात कही गयी थी। आज़ाद इस्लाम के समानता और बंधुत्व के सिद्धांत से प्रेरित थे। यहाँ भी राज्य की भूमिका थी।

गांधीजी असमानता को दूर करने में नैतिक मूल्यों को महत्वपूर्ण मानते थे। उनका आदर्श Trusteeship (न्यास व्यवस्था) था। उनका मानना था कि जो धनी हैं, उनका दायितत्व निर्धनों के कल्याण के प्रति है। अतः वे राज्य से अधिक समाज की भागीदारी में विश्वास रखते थे।

कुछ समय बाद पंडित नेहरू ने कांग्रेस के सहयोगी दल के रूप में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना कुछ अन्य नेताओं के साथ मिलकर की, जबकि सुभाष चन्द्र बोस ने 1940 में फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन कांग्रेस से पृथक दल के रूप में किया। मौलाना आज़ाद गांधीजी से कुछ अलग विचार रखने के बावजूद उनके ही साथ जुड़े रहे।

1942 में आजाद और नेहरू दोनों को ही अहमदनगर किले में कैद किया गया। लगभग साढ़े चार वर्ष वे वहाँ साथ रहे। इसी अवधि में पंडित नेहरू ने “Discoveryofindia” लिखी और मौलाना आजाद ने “गुबार-ए-खातिर”।

1946 में कैबिनेट मिशन के आगमन के बाद देश की आज़ादी के प्रस्तावों पर चर्चा के लिये कांग्रेस के सभी नेता रिहा किये गये। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में आज़ाद ने इस संवाद में सक्रिय भाग लिया, किन्तु 1946 में शिमला कांफ्रेस के अवसर पर मौलाना आजाद ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से अलग होने का फैसला कर लिया था। आजाद और नेहरू के बीच पारस्परिक विश्वास और सहमति यहां भी बनी रही।

नेहरू ने आज़ाद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा थाः

“हमारे बीच महापुरुष रहे हैं और रहेंगे। मगर मैं यह कहना चाहता हूँ कि जिस विशेष प्रकार की महानता के प्रतीक मौलाना आजाद थे, वह अब भारत ही नहीं, विश्व में दोबारा नहीं देखी जायेगी।”

आज़ाद इन शब्दों में नेहरू की प्रशंसा करते हैं”जवाहर लाल नेहरू मेरे अत्यंत प्रिय मित्र हैं। उन्होंने हिन्दुस्तान (भारत) के राष्ट्रीय जीवन की प्रगति में किसी से कम हिस्सा नहीं लिया है। उन्होंने हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए परिश्रम किया है और कष्ट उठाये हैं और आजादी के बाद वे हमारी राष्ट्रीय एकता और प्रगति के प्रतीक बन गए हैं।”

महिलाओं का सम्मान

 

मौलाना आज़ाद के पिता मौलवी खैरुद्दीन एक पुरातनवादी धर्माचार्य थे। यह आम धारणा है कि पुरातनवादी मुसलमान महिलाओं के लिए परदा के कठोर पालन पर जोर देते हैं, समाज में उनकी सक्रिय भागीदारी का समर्थन नहीं करते

और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखते हैं। मौलवी खैरुद्दीन के परिवार में ऐसा नहीं था। वे महिलाओं की शिक्षा को महत्व देते थे। उनकी तीनों बेटियाँ शिक्षित थीं, साहित्यिक प्रतिभा रखती थीं और कविताएँ लिखा करती थीं। _मौलाना आजाद इसी पारिवारिक वातावरण में बड़े हुए थे। उनके व्यक्तित्व के विकास में उनकी माता बीबी आलिया का निर्णायक प्रभाव था। महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना इसी कारण उनमें बहुत प्रबल थी। उनकी पत्नी जुलैखा बेगम भी शिक्षित थीं। उर्दू में लिखी उनकी ग़ज़लें आज भी सुरक्षित हैं। उन्होंने जिस प्रकार आज़ाद के राजनीतिक जीवन के प्रोत्साहन में रुचि ली और आत्म-त्याग किया, उससे भी आज़ाद के मन में महिलाओं के लिये सम्मान की भावना बनी थी। ____ मौलाना आज़ाद ने अपने पिता के बाद अपनी बहनों को सामाजिक कार्यों से जोड़े रखने में सक्रियता दिखाई। उनकी एक बहन आरजू बेगम महिलाओं में शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए बराबर प्रयासशील रहीं। 1918 में लाहौर में ऑल इंडिया मुस्लिम लेडीज़ कांफ्रेंस में महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिए एक महिला विश्वविद्यालय की स्थापना का उन्होंने प्रस्ताव भेजा। इन गतिविधियों में आज़ाद

ने हमेशा उनका प्रोत्साहन किया। _____नारी-शिक्षा को मौलाना आजाद ने सामाजिक सुधारों में प्रधानता दी। महिलाओं में अशिक्षा के अभिशाप की उन्होंने तीखी आलोचना की। वे महिलाओं की पारंपरिक शिक्षा के तत्कालीन रूप से भी संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि “इसमें न वह लाभ प्राप्त होता है जिसकी हमें लालसा है, न उनके (महिलाओं के दिमाग रौशन होते हैं, न उनकी औलाद पर प्रभाव पड़ता है, न वह शिक्षित पतियों पर कोई प्रभाव डाल सकती हैं और न वह उनकी कोई मददगार हो सकती हैं।” ___ उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था : “शिक्षा संबंधी हमारी प्रगति पूरी तरह महिलाओं की शिक्षा पर निर्भर है। अगर महिलाएँ शिक्षा के रास्ते पर चल पड़ें, तो हमारी आधी समस्याओं का समाधान हो जाए।” सरोजिनी नायडू और अरुणा आसफ अली को उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने में निर्णायक भूमिका निभाई। मीरा बेन की राजनीतिक गतिविधियों में भी उनकी रुचि रही थी। ___ आजाद नारी शिक्षा के साथ नारी-सशक्तीकरण में भी विश्वास रखते थे। धरसाना सत्याग्रह (1932) में मौलाना आजाद के साथ सरोजिनी नायडू भी नेतृत्व का काम कर रही थीं। इसी प्रकार जब 9 अगस्त, 1942 को कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिये गए, तो अरुणा आसफ अली ने बम्बई के ग्वालिया टैंक के स्थान पर तिरंगा लहराकर “भारत छोड़ो आंदोलन” का विधिवत आरंभ किया था। राष्ट्रीय आंदोलन के संदर्भ में आजाद ने महिलाओं की भूमिका को पहचाना और प्रोत्साहित किया।

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