डॉ देवराज :: व्यक्ति एवं सर्जन
डॉ देवराज :: व्यक्ति एवं सर्जन
डॉ देवराज का जन्म उत्तर प्रदेश के रामपुर में शान 1917 में हुआ | अपनी आरंभिक शिक्षा रामपुर में पूरी करने के बाद वे लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्ययनरत रहकर वहीं पर दर्शन शास्त्री विभाग में प्राध्यापक हो गए | कुछ वर्षों बाद वे हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के उच्चानुशिलन दर्शन केंद्र के निदेशक पद पर रहे |
डॉ देवराज दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे, परंतु हिंदी के आधुनिक साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने कवि के रूप में प्रवेश किया और आलोचकों के रूप में सर्वाधिक ख्याति प्राप्त की | आचार्य रामचंद्र शुक्ल की अरब में ब्रज भाषा के कवि के रूप में आए और बाद में हिंदी के श्रेष्ठ आलोचक निबंधकार और साहित्य के इतिहास कार्य के रूप में प्रतिष्ठित हुए | ठीक उसी प्रकार देवराज में आधुनिक और शुक्लोत्तर युग के आलोचक के रूप में प्रसिद्ध पाई है | वह स्वयं यह कहने से नहीं चूके हैं कि आलोचक नियंता अपेक्षित नहीं है कि वह साहित्यकार की भांति जीवन की जटिलताओं उसे देख सके, किंतु उसने इतनी योग्यता अवश्य होनी चाहिए कि वह लेखक की दृष्टि या सूझ की दाद दे सके | वस्तुत: लेखक और आलोचक में मुख्य अंतर यह होता है कि जहां की द्वितीय में युग जीवन की धुंधली चेतना होती है, प्रथम में जितना अधिक स्पष्ट और मूर्त होती है |
डॉ देवराज अंतरानुशासिनिये अध्ययन के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाने जाते हैं | दर्शन के अतिरिक्त साहित्यकार मनोवांछित विषय है जिसमे कविता, निबंध और उपन्यास क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया है | संस्कृति का दार्शनिक विवेचन उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति है | दार्शनिक चिंतक होने के साथ-साथ डॉक्टर देवराज हिंदी गद्य विधाओं मैं अपनी चिंतन दृष्टि लिए हुए हैं | साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक के अतिरिक्त उनका विचारक भी प्रबल नहीं है |वे मनाबादी परंपरा के पोषक हैं, तभी साहित्य संजना में उनका दृष्टिकोण सर्वथा मौलिक है | उनका संग्रह चिंतन एवं सोच सांस्कृतिक अभिजात्य का विशेष आग्रह लिए हुए हैं | डॉ देवराज का साहित्य योगदान और अब दान सदैव गंभीर चिंतक एवं एकाग्र अध्ययन वासी की परिणिति है | उनके विस्तृत अध्ययन और सुरुचि पूर्ण अभिव्यक्ति के कारण उनके निबंधों की पठनीयता व्यापक रूप से जानी जाती है |
डॉ देवराज के साहित्यक वदा को हम तिन भिन्न वर्गों में रख कर देख सकते हैं–
अ – काव्य संग्रह
- इतिहास पुरुष
आ – निबंध एवं आलोचना
- साहित्यि चिंता: आधुनिक संदर्भ
- छायावाद का पतन
- साहित्य और संस्कृति
- संस्कृति का दार्शनिक विवेचन
- भारतीय संस्कृति
इ – उपन्यास
- पथ की खोज
- अजय की डायरी
- मैं, वह और आप
डॉ देवराज उपाध्याय ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि अजय की डायरी में उनका चिंतक तो है, और उससे भी अधिक एक मनोवैज्ञानिक वहां उपस्थित कर दिया है | निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है देवराज के निबंध साहित्य में साहित्यिक चिंतक के साथ साथ उनका सांस्कृतिक चिंता कभी उभर कर आया है तथा हिंदी आलोचना को वह श्रेष्ठ अबदान दे गए हैं | वाराणसी में ही उनका देहावसान 1982 में हुआ है |