डॉ वासुदेव शरण :: अग्रवाल व्यक्ति एवं सृजन
डॉ वासुदेव शरण :: अग्रवाल व्यक्ति एवं सृजन
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल स्वतंत्र कालीन प्रतिभा संपन्न निबंधकार हैं | उनकी प्रतिभा की सबसे बड़ी देन हिंदी साहित्य को यही है कि वे अपने देश के साहित्य और संस्कृति के गंभीर अध्ययन की प्रस्तुति देते हैं | डॉ अग्रवाल के निबंध प्राय: चिंतन प्रधान होने के कारण चिंतन जन्य गंभीरता से युक्त होते हैं या फिर व्यवहृत उनकी विवेचनात्मक शैली बहुत ही अस्पष्ट सहज और बोधगम्य होती है |
वासुदेव शरण अग्रवाल का पूर्ण वृत्त अनुपलब्ध है | यद्यपि इतना उल्लेख हिंदी साहित्य कोशकार द्वारा दिया है इनका जन्म सन 1940 में हुआ था | सन 1929 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. परीक्षा उत्तीर्ण की थी तथा सन 1940 तक मथुरा के पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर रहे |
वासुदेव शरण कई विषयों के विशेषज्ञ रहे है | अपने अध्ययन की इसी विशेषता के रहते हुए उन्होंने सन 1941 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की तथा उसके 5 वर्ष बाद ही सन 1946 में उन्होंने डीलिट की उपाधि प्राप्त की | वासुदेव शरण अग्रवाल 1952 तक काशी लखनऊ विश्वविद्यालय के राधा कुमुद मुखर्जी व्याख्यान की ओर से व्याख्यान दाता नियुक्त किए गए | उनके व्याख्यान का विषय था पानीनी | डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल भारतीय मुद्रा परिषद (नागपुर) भारतीय संग्रहालय परिषद (पटना) द्वारा आयोजित अनेक व्याख्यान मालाओं में कितने ही व्याख्यान दिए हैं |
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल प्रतिभा बहुल विद्वान थे | संस्कृति इतिहास लोक साहित्य पुरातात्विक चिंतक के अनेक रूपों में उन्होंने अपनी प्रतिभा स्थापित की है | यही कारण है कि उन्होंने बाणभट्ट की मेधा के सधन गद्य गगन को उद् भाषित करने में अपनी प्रतिभा का समन्वय प्रस्तुत कर दिया है यही नहीं दूसरी और उनके मनशचक्षु महाकवि गद्य गहवर में गहराई तक बैठकर सांस्कृतिक कांति के अनुरूप रत्न निकालकर पाठक के सम्मुख रख दिए हैं | वास्तव में डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल ने महाकवि का अंत: पट खोल दिया है इसका श्रेष्ठ उदाहरण यहां पर स्थित निबंध महाकविबाण इस सृष्टि और दृष्टि है जो महाकवि बाणभट्ट की अद्वितीय सर्जन शक्ति का विवेचन प्रस्तुत करता है |
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित पुस्तकें हैं–
ज्योति, कला और संस्कृति, कल्पवृक्ष, कादंबरी, मलिक मोहम्मद जायसी पद्मावत, पृथ्वी पुत्र, भारत की मौलिक एकता, हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन | इसके अतिरिक्त कई पुस्तकों का संपादन और अनुवाद भी किया है | कालिदास के मेघदूत और बाणभट्ट के हर्षचरित की नवीन पीठिका का प्रस्तुत की है | संस्कृत साहित्य में बाणभट्ट एक युग प्रवर्तक ही नहीं है अपितु एक और समानांतर गद्दकार भी हैं | डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल ने उनके संबंध में उल्लेख भी किया है कि सातवीं शती की भारतीय संस्कृति का रूप चित्रण करने के लिए मोहन भट्ट किसी विशिष्ट कला संग्रह के उस संघ अध्यक्ष की भांति है जो प्रत्येक कलात्मक वस्तुओं का पूरा पूरा देवरा दर्शक को देकर उसके ज्ञान और आनंद की वृद्धि करना चाहते हैं | यह दोनों ग्रंथ भारतीय इतिहास की सांस्कृतिक सामग्री के लिए अमृत के झरने हैं |
संस्कृत साहित्य की गद्य पद्य विधाओं के समर्थ सर्च के रूप में जहां महोत्सवी बाणभट्ट का व्यापक महत्व माना जाता है वही उनके गद्दकार ने संस्कृत साहित्य के गद्य के विकास की भूमिका में प्रभाव कारी हस्तक्षेप भी किया है | महाकवि बाणभट्ट के सर्जन पर अपनी विद्वता अभिव्यक्ति निम्नलिखित रुप में प्रस्तुत करते हैं–
बाणभट्ट (606 – 648) इसवी के प्रसिद्ध महत्वपूर्ण ग्रंथ दो हैं जीनमें एक हर्षचरित और दूसरा कादंबरी है | इनमें से हर्षचरित के सांस्कृतिक दृष्टि से अध्ययन पर ही अग्रवाल ने विचार किया है कि– बाणभट्ट के व्यक्तित्व के विश्लेषण से दो बातें मुख्य रूप से ज्ञात होती है, एक तो जन्म से ही उनकी बुद्धि बहुत गहरी थी | बाण की मेधा व्यापक और विविध रूपा थी और दूसरे वे विल्सन ज्ञान उत्सुक थे | वे कहते हैं- किसी नई बात को जानने के लिए मेरे मन में तुरंत ही कुतूहल का ऐसा बैग उठता है कि मैं लाचार हो जाता हूं और उसी के पूरे संदर्भ में वे जाने के लिए तत्पर हो जाते हैं | इसी प्रकार गंभीर धरना शक्ति और जानकारी पैनी उत्सुकता बाणभट्ट के व्यक्तित्व के जन्मसिद्ध गुण थे | इसके साथ ही जीवन की अल्हार्ता और घुमाक्करी प्रवृत्ति जैसी प्रवृत्ति का समावेश भी उन में देखा जा सकता है| यही कारण है कि उनके रचना संसार में यथार्थ समाज जीवन का यथार्थ परिवेश लोकाचार् की अनुभव जन्य अभिव्यक्ति उनकी सर्जना में मिलती है|
बान की बुद्धि चित्र ग्राहिनी थी तभी उनकी रचनाओं में चित्रात्मक दृश्यों की अभिव्यक्ति की बहुलता है| पानीनी के कोशिका कार ने लिखा था कि उनकी दृष्टि वस्तुओं के अवलोकन में बड़ी पैनी थी
बाणभट्ट की शक्ति और कवि सुलभ प्रतिभा के अनेक प्रमाण हर्षचरित और कादंबरी में मिलती है | जिनमें सांस्कृतिक सामग्री का स्रोत प्रभाहित है जो कभी भी काल्पनिक नहीं हो सकता | यह साक्ष निरूपक अभिव्यक्ति अधिक मूल्यवान है|
सावंती सती की सांस्कृतिक रूप चित्रण की दृष्टि से बाणभट्ट के संबंध में लेखक के शब्दों का उल्लेख है कि बाणभट्ट वर्णनात्मक शैली के धनी है | तिलक मंजरी में धनपाल ने उनकी उपमा अमृत उत्पन्न करने वाले गहरे समुद्र से की है बाणभट्ट के वर्णन ही उनके काव्य की निधि है | जब एक बार पाठक इन वर्णन को अनुवीक्षण की युक्ति से देखता है तब उनमें उसे रुचि उत्पन्न हो जाती है और बाणभट्ट की अक्षरा डंबर पूर्ण शैली के भीतर छिपे हुए रसवादी स्रोत तक पहुंच जाता है |कभी-कभी रस लोभी पाठक का मन चाहने लगता है कि यह वर्णन कुछ और अधिक सामग्री से हमारा परिचय कराता है विशेषता संस्कृति सामग्री के विशेष विषय में उन्होंने इस शैली के द्वारा जो कुछ हमें दिया है वह भी पर्याप्त है और उसके लिए हमें उनका कृतज्ञ होना चाहिए |