CBSE Class 10 Hindi B Unseen Passages अपठित काव्यांश
CBSE Class 10 Hindi B Unseen Passages अपठित काव्यांश
अपठित काव्यांश
अपठित काव्यांश अपठित काव्यांश किसी कविता का वह अंश होता है जो पाठ्यक्रम में शामिल पुस्तकों से नहीं लिया जाता है। इस अंश को छात्रों द्वारा पहले नहीं पढ़ा गया होता है।
अपठित काव्यांश का उद्देश्य काव्य पंक्तियों का भाव और अर्थ समझना, कठिन शब्दों के अर्थ समझना, प्रतीकार्थ समझना, काव्य सौंदर्य समझना, भाषा-शैली समझना तथा काव्यांश में निहित संदेश। शिक्षा की समझ आदि से संबंधित विद्यार्थियों की योग्यता की जाँच-परख करना है।
अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करने से पहले काव्यांश को दो-तीन बार पढ़ना चाहिए तथा उसका भावार्थ और मूलभाव समझ में आ जाए। इसके लिए काव्यांश के शब्दार्थ एवं भावार्थ पर चिंतन-मनन करना चाहिए। छात्रों को व्याकरण एवं भाषा पर अच्छी पकड़ होने से यह काम आसान हो जाता है। यद्यपि गद्यांश की तुलना में काव्यांश की भाषा छात्रों को कठिन लगती है। इसमें प्रतीकों का प्रयोग इसका अर्थ कठिन बना देता है, फिर भी निरंतर अभ्यास से इन कठिनाइयों पर विजय पाई जा सकती है।
अपठित काव्यांश संबंधी प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित प्रमुख बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए
- काव्यांश को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ना और उसके अर्थ एवं मूलभाव को समझना।
- कठिन शब्दों या अंशों को रेखांकित करना।
- प्रश्न पढ़ना और संभावित उत्तर पर चिह्नित करना।
- प्रश्नों के उत्तर देते समय प्रतीकार्थों पर विशेष ध्यान देना।
- प्रश्नों के उत्तर काव्यांश से ही देना; काव्यांश से बाहर जाकर उत्तर देने का प्रयास न करना।
- उत्तर अपनी भाषा में लिखना, काव्यांश की पंक्तियों को उत्तर के रूप में न उतारना।
- यदि प्रश्न में किसी भाव विशेष का उल्लेख करने वाली पंक्तियाँ पूछी गई हैं तो इसका उत्तर काव्यांश से समुचित भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ही लिखना चाहिए।
- शीर्षक काव्यांश की किसी पंक्ति विशेष पर आधारित न होकर पूरे काव्यांश के भाव पर आधारित होना चाहिए।
- शीर्षक संक्षिप्त आकर्षक एवं अर्थवान होना चाहिए।
- अति लघुत्तरीय और लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर में शब्द सीमा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
- प्रश्नों का उत्तर लिखने के बाद एक बार दोहरा लेना चाहिए ताकि असावधानी से हुई गलतियों को सुधारा जा सके।
काव्यांश को हल करने में आनेवाली कठिनाई से बचने के लिए छात्र यह उदाहरण देखें और समझें-
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्नः 1.
कवि देशवासियों से क्या आह्वान कर रहा है?
उत्तर:
कवि देशवासियों से यह आह्वान कर रहा है कि वे भारत में एकता स्थापित करके सुख-शांति से जीवन बिताएँ।
प्रश्नः 2.
आपस में एकता बनाए रखने के लिए किसका उदाहरण दिया गया है ?
उत्तर:
आपस में एकता बनाए रखने के लिए कवि तरह-तरह के फूलों से बनी सुंदर माला का उदाहरण दे रहा है।
प्रश्नः 3.
देश में एकता की भावना कब मज़बूत हो सकती है?
उत्तर:
देश में एकता की सच्ची भावना तब मज़बूत हो सकती है जब हर देशवासी जाति-धर्म, भाषा प्रांत आदि के बारे में अविवेक से सोचना बंद करे और सच्चे मन से दूसरों से मेल करे।
प्रश्नः 4.
“भिन्नता में खिन्नता’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
भिन्नता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि अलग-अलग रहने का परिणाम दुख एवं अशांति ही होता है। अतः हमें मेल जोल और ऐक्यभाव से रहना चाहिए क्योंकि एकता के अभाव में देश कमज़ोर हो जाएगा जिसका परिणाम दुखद ही होगा।
प्रश्नः 5.
काव्यांश में सच्ची एकता किसे कहा गया है ? इसे बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सच्चे मन से ही एक-दूसरे से मिलने को सच्ची एकता कहा है। इसके लिए भारतीयों को आपसी बैर और विरोध को सप्रयास बलपूर्वक दबा देना चाहिए और एकता मज़बूत करनी चाहिए।
उदाहरण (उत्तर सहित)
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(1) पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
पुस्तकों में है नहीं, छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जुबानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर, छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
है अनिश्चित किस जगह पर, सरित-गिरि-गह्वर
मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर, बाग-बन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के सर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
प्रश्नः (क)
कवि ने बटोही को क्या सलाह दी है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने बटोही को यह सलाह दी है कि वह रास्ते पर चलने से पहले उसके बारे में जाँच-परख कर ले। वह ऐसा करने के लिए इसलिए कहता है क्योंकि इससे यात्रा सुगम और निर्विघ्न रूप से पूरी हो जाएगी।
प्रश्नः (ख)
निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीवन पथ पर बहुत से लोग गए हैं पर उनमें कुछ विशिष्ट लोग भी थे, जो अपने अच्छे कर्मों का उदाहरण छोड़ गए। उनके द्वारा छोड़ी गई अच्छे कर्मों की निशानी यद्यपि मूक है पर हमें जीवन पथ पर चलते जाने की प्रेरणा देती है।
प्रश्नः (ग)
कवि ने जीवन मार्ग में क्या-क्या अनिश्चितताएँ बताई हैं?
उत्तर:
कवि ने जीवन पथ में मिलने वाले सुख-दुख, साथ-चलने वालों का अचानक साथ छोड़ देना या नए यात्रियों का मिल जाना और जीवन कभी भी समाप्त हो सकता है जैसी अनिश्चितताएँ बताई हैं।
(2) आज की दुनिया विचित्र, नवीन;
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
हैं बँधे नर के करों में वारि, विद्युत्, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान,
लाँघ सकता नर सरित्, गिरि, सिंधु एक समान।
प्रकृति के सब तत्त्व करते हैं मनुज के कार्य;
मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश,
और करता शब्दगुण अंबर वहन संदेश।
नव्य नर की मुष्टि में विकराल,
हैं सिमटते जा रहे प्रत्येक क्षण विकराल।
यह प्रगति निस्सीम! नर का यह अपूर्व विकास!
चरण-तल भूगोल! मुट्ठी में निखिल आकाश!
किंतु, है बढ़ता गया मस्तिष्क ही निःशेष,
शीश पर आदेश कर अवधार्य,
छूट पर पीछे गया है रह हृदय का देश;
मोम-सी कोई मुलायम चीज़
ताप पाकर जो उठे मन में पसीज-पसीज।
प्रश्नः (क)
कवि को आज की दुनिया विचित्र और नवीन क्यों लग रही है?
उत्तर:
कवि को आज की दुनिया विचित्र और नवीन इसलिए लग रही है क्योंकि आज मनुष्य ने प्रकृति पर सर्वत्र विजय प्राप्त कर ली है। प्राकृतिक बाधाएँ उसका मार्ग नहीं रोक पाती हैं।
प्रश्नः (ख)
‘हैं नहीं बाकी कहीं व्यवधान’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कहीं नहीं बाकी व्यवधान के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि मनुष्य के सामने अब कोई रुकावट नहीं है। आज पानी, बिजली, भाप, वायु मनुष्य के हाथों में बँधे हैं। वह अपनी मर्जी से इनका उपयोग कर रहा है। अब नदी, पहाड़, सागर सभी को लाँघ सकता है।
प्रश्नः (ग)
मानव द्वारा किए गए वैज्ञानिक प्रगति के अद्भुत विकास कवि को खुशी नहीं दे रहे हैं, क्यों?
उत्तर:
मानव द्वारा किए गए अद्भुत विकास कवि को इसलिए खुशी नहीं दे रहे हैं क्योंकि मनुष्य ने अपने मस्तिष्क का विकास तो खूब किया पर हृदय का विकास पीछे छूट गया अर्थात् जीवन मूल्यों में गिरवाट आती गई।
(3) मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ-
जब तुम मुझे पैरों से रौंदते हो ।
तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो
तब मैं-
धन-धान्य बनकर मातृरूपा हो जाती हूँ।
पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्थ-पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो
तब मैं
अपने ग्राम्य देवत्व के साथ विन्मयी शक्ति हो जाती हूँ
प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्या हो जाती हूँ।
विश्वास करो
यह सबसे बड़ा देवत्व है कि
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो
और में स्वरूप पाती मृत्तिका।
प्रश्नः (क)
पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व क्यों कहा गया है?
उत्तर:
मनुष्य अपने पुरुषार्थ द्वारा ही मिट्टी को भिन्न आकार देता है। मनुष्य के पुरुषार्थ के परिणामस्वरूप ही मिट्टी चिन्मयी शक्ति का रूप धारण करती है। पुरुषार्थ हर सफलता का मूलमंत्र है, इसलिए उसे सबसे बड़ा देवत्व माना गया है।
प्रश्नः (ख)
मिट्टी चिन्मयी शक्ति कब बन जाती है, कैसे?
उत्तर:
मिट्टी जब आराध्या की प्रतिमा बन जाती है तब वह चिन्मयी शक्ति प्राप्त कर लेती है। मनुष्य जब थक हारकर आराध्या की आराधना करता है तब वह पराजित मनुष्य को सांत्वना देकर उसे शक्ति प्रदान करती है।
प्रश्नः (ग)
मिट्टी मातृरूपा कब बन जाती है?
उत्तर:
मिट्टी को जब जोत कर, रौंदकर भुरभुरा बनाया जाता है, उसमें फसलें उगाई जाती है तब मिट्टी धन-धान्य से भरपूर हो जाती है और मातृरूपा बनाकर माँ के समान हमारा भरण-पोषण करती है।
(4) हम प्रचंड की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल। ।
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर, वीर, गंभीर, अचल।
हम प्रहरी ऊँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं।
हम हैं शांति-दूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीर प्रसू माँ की आँखों के, हम नवीन उजियाले हैं।
गंगा, यमुना, हिंद महासागर के हम ही रखवाले हैं।
तन-मन-धन तुम पर कुर्बान,
जियो, जियो जय हिंदुस्तान !
हम सपूत उनके, जो नर थे, अनल और मधु के मिश्रण।
जिनमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन।
एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल।
जितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर के मल।
थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर।
स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर।
हम उन वीरों की संतान
जियो, जियो जय हिंदुस्तान।
प्रश्नः (क)
कविता में ‘हम’ कौन हैं ?
उत्तर:
कविता में ‘हम’ भारत की नई पीढ़ी के नवयुवक हैं। वे अपने को प्रचंड की नई किरण इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि अब उन्हें अपने अच्छे कार्यों का आलोक दुनिया भर में फैलाना है, तथा वे देश के भावी कर्णधार हैं।
प्रश्नः (ख)
भारतवासी हिंदुस्तान पर क्या-क्या न्योछावर करना चाहते हैं, क्यों?
उत्तर:
भारतीय नवयुवक अपने देश हिंदुस्तान पर तन, मन और धन अर्थात् सर्वस्व न्योछावर कर देना चाहते हैं क्योंकि देश की आन-बान-शान की रक्षा और भविष्य का उत्तरदायित्व उनके कंधों पर है।
प्रश्नः (ग)
‘अनल और मधु के मिश्रण’ किन्हें कहा गया है? उनकी अन्य विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
अनल और मधु के मिश्रण हम भारतीयों के पूर्वजों को कहा गया है। वे युद्ध में आग के समान कोहराम मचाने वाले परंतु हृदय से बड़े दयालु थे। उनका तेज़ अत्यंत प्रखर और हृदय कोमल भावों से भरा था।
(5) आज सवेरे
जब वसंत आया उपवन में चुपके-चुपके
कानों ही कानों में मैंने उससे पूछा
“मित्र पा गए तुम तो अपने यौवन का उल्लास दुबारा
गमक उठ फिर प्राण तुम्हारे,
फूलों-सा मन फिर मुसकाया
पर साथी
जब मेरे जीवन का पहला पहर झुलसता था लपटों में,
तुम बैठे थे बंद उशीर पटों से घिरकर।
मैं जब वर्षा की बाढ़ों में डूब-डूब कर उतराया था
तुम हँसते थे वाटर प्रूफ़ कवचन को ओढ़े।
और शीत के पाले में जब गलकर मेरी देह जम गई
तब बिजली के हीटर से
तुम सेंक रहे थे अपना तन-मन
जिसने झेला नहीं, खेल क्या उसने खेला?
जो कष्टों से भागा दूर हो गया सहज जीवन के क्रम से,
उसको दे क्या दान प्रकृति की यह गतिमयता यह नव बेला।
पीड़ा के माथे पर ही आनंद तिलक चढ़ता आया है
क्या दोगे मुझको?
मेरा यौवन मुझे दुबारा मिल न सकेगा?”
सरसों की उंगलियाँ हिलाकर संकेतों में वह यों बोला,
मेरे भाई!
व्यर्थ प्रकृति के नियमों की यों दो न दुहाई,
होड़ न बाँधो तुम यो मुझसे।
मुझे देखकर आज तुम्हारा मन यदि सचमुच ललचाया है
तो कृत्रिम दीवारें तोड़ो
बाहर जाओ,
खुलो, तपो, भीगो, गल जाओ
आँधी तूफ़ानों को सिर लेना सीखो
जीवन का हर दर्द सहे जो स्वीकारो हर चोट समय की
जितनी भी हलचल मचती हो, मच जाने दो
रस विष दोनों को गहरे में पच जाने दो
तभी तुम्हें भी धरती का आशीष मिलेगा
तभी तुम्हारे प्राणों में भी यह
पलाश का फूल खिलेगा।
प्रश्नः (क)
उपवन को हरा-भरा देख कवि ने उससे क्या कहा और उससे क्या माँगा?
उत्तर:
उपवन को हरा-भरा देखकर कवि ने उससे कहा कि मित्र! तुम्हें तो अपने यौवन की खुशियाँ दुबारा मिल गईं। इससे तुम्हारा मन महक उठा है। कवि ने उपवन से अपने यौवन का उल्लास माँगा।
प्रश्नः (ख)
धरती के सुख मनुष्य को कब सुलभ हो सकते हैं ?
उत्तर:
धरती के सुख मनुष्य को तब सुलभ हो सकते हैं, जब मनुष्य सुख और दुख दोनों को समान रूप में अपनाए और सहन करे। केवल सुखों को अपनाने और दुख से विमुख रहने पर वह धरती के सुख नहीं पा सकता है।
प्रश्नः (ग)
मानव ने स्वयं को किन-किन कृत्रिम दीवारों में कैद कर रखा है ?
उत्तर:
मानव ने स्वयं को जिन कृत्रिम दीवारों में कैदकर रखा है, वे हैं
- समस्त सुख-सुविधाओं के साधन
- मौसम की मार से बचाने वाले उपकरण आदि।
(6) इस समाधि में छिपी हुई है
एक राख की ढेरी।
जलकर जिसने स्वतंत्रता की
दिव्य आरती फेरी॥
यह समाधि यह लघु समाधि, है
झाँसी की रानी की।
अंतिम लीला-स्थली यही है
लक्ष्मी मर्दानी की॥
यहीं कहीं पर बिखर गई वह
भग्न विजय-माला-सी
उसके फूल यहाँ संचित हैं
है वह स्मृति-शाला-सी॥
सहे वार पर वार अंत तक
लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर
चमक उठी ज्वाला-सी॥
बढ़ जाता है मान वीर का
रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की
भस्म यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अब
यहाँ समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की
आशा की चिंगारी॥
प्रश्नः (क)
कवि किसकी समाधि की बात कर रहा है?
उत्तर:
कवि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि के बारे में बात कर रहा है। उसने रानी लक्ष्मीबाई को मर्दानी इसलिए कहा है क योंकि रानी ने महिला होकर पुरुष वीर योद्धा की भाँति युद्ध किया और लड़ते-लड़ते वीरगति प्राप्त की।
प्रश्नः (ख)
अंतिम लीला-स्थली किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
अंतिम लीला-स्थली समाधि के आस-पास के उस स्थल को कहा गया है, जहाँ रानी लक्ष्मीबाई का अंग्रेजों के साथ भीषण युद्ध हुआ था। यहीं रानी को वीरगति मिली थी। यह रानी का अंतिम युद्ध था, इसलिए उसे अंतिम लीला-स्थली कहा गया है।
प्रश्नः (ग)
वीर का मान कब बढ़ जाता है?
उत्तर:
वीर का मान तब बढ़ जाता है जब वह अपने देश की रक्षा के लिए युदध करते-करते वह अपना बलिदान दे देता है। उसका यह बलिदान देशवासियों में देशभक्ति और देशभक्ति की भावना जगाते है। इससे दूसरे लोग भी अपने देश के लिए कुछ कर गुज़रने के लिए प्रेरित हो उठते हैं।
(7) बजता है समय अधीर पथिक,
मैं नहीं सदाएँ देती हूँ
हूँ पड़ी राह से अलग, भला
किस राही का क्या लेती हूँ?
मैं भी न जान पायी अब तक,
क्यों था मेरा निर्माण हुआ?
सूखी लकड़ी के जीवन का
जाने सर्बस क्यों गान हुआ?
जाने किसकी दौलत हूँ मैं
अनजान, गाँठ से गिरी हुई।
जानें किसका हूँ स्वप्न
ना जानें किस्मत किसकी फिरी हुई।
तुलसी के पत्ते चले गये
पूजोपहार बन जाने को।
चंदन के फूल गये जग में
अपना सौरभ फैलाने को।
जो दूब पड़ोसिन है मेरी,
वह भी मंदिर में जाती है।
पूजती कृषक-वधुएँ आकर,
मिट्टी भी आदर पाती है।
बस, एक अभागिन हूँ जिसका
कोई न कभी भी आता है।
झंझा से लेकर काल-सर्प तक
मुझको छेड़ बजाता है।
प्रश्नः (क)
बाँसुरी अब तक क्या नहीं जान पाई? वह ‘सूखी लकड़ी के जीवन का’ के माध्यम से क्या कहना चाहती है? \
उत्तर:
बाँसुरी अब तक यह नहीं जान पाई कि इस दुनिया में उसे क्यों बनाया गया है ? ‘सूखी लकड़ी के जीवन का’ के माध्यम से वह यह कहना चाहती है कि बाँस से बनी बाँसुरी को जब वादक मधुर स्वर फूंककर बजाता है तो उस सूखी लकड़ी में भी जीवन आ जाता है। वह प्राणवान हो जाती है।
प्रश्नः (ख)
बासुरी को अपनी किस्मत और तुलसी-चंदन में क्या अंतर दिखाई देता है ?
उत्तर:
रास्ते में पड़ी बाँसुरी सोचती है कि वह न जाने किसकी अनजान दौलत है जो किसी की गाँठ से गिर गई हूँ। मुझे उठाने वाला कोई नहीं है, जबकि तुलसी के पत्ते पूजा बनने और चंदन के फूल अपनी महक लुटाने के लिए चले गए हैं। ऐसा बाँसुरी को किस्मत के कारण लगता है।
प्रश्नः (ग)
इस कविता में दुख का भाव किस प्रकार व्यक्त होता है?
उत्तर:
बाँसुरी का दुख यह है कि जंगल के अन्य सभी पेड़-पौधे यहाँ तक कि मिट्टी भी आदर का पात्र समझी जाती है पर बाँसुरी उपेक्षित पड़ी रहती है और उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता है।
(8) नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर हैं,
सूर्य चंद्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है,
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडल है,
बदीजन खग-वृंद, शेषफन सिंहासन है
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की
हे मातृभूमि! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की;
जिसकी रज में लोट-लोटकर बड़े हुए हैं,
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं,
परमहंस सम बाल्यकाल में सब, सुख पाए,
जिसके कारण ‘धूल भरे हीरे कहलाए,
हम खेले-कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में
हे मातृभूमि! तुझको निरख, मग्न क्यों न हो मोद में
निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,
शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है,
षट्ऋतुओं का विविध दृश्य युत अद्भुत क्रम है,
हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है,
शुचि-सुधा सींचता रात में, तुझ पर चंद्रप्रकाश है
हे मातृभूमि! दिन में तरणि, करता तम का नाश है
जिस पृथ्वी में मिले हमारे पूर्वज प्यारे,
उससे हे भगवान! कभी हम रहें न न्यारे,
लोट-लोट कर वहीं हृदय को शांत करेंगे
उसमें मिलते समय मृत्यु से नहीं डरेंगे,
उस मातृभूमि की धूल में, जब पूरे सन जाएंगे
होकर भव-बंधन-मुक्त हम, आत्मरूप बन जाएँगे।
प्रश्नः (क)
कवि अपने देश पर क्यों बलिहारी जाता है?
उत्तर:
कवि अपने देश पर इसलिए बलिहारी जाता है क्योंकि इस देश का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम, अतुलनीय है। यहाँ वातावरण में चारों ओर हरियाली फैली हैं। यहाँ की नदियाँ जीवनदायिनी है तथा सागर हमें अमूल्य संपदा प्रदान करता है।
प्रश्नः (ख)
कवि अपनी मातृभूमि के जल और वायु की क्या-क्या विशेषता बताता है?
उत्तर:
कवि अपनी मातृभूमि के जल की विशेषता बताता है कि अत्यंत शीतल स्वच्छ और अमृत के समान है। इसी तरह यहाँ की वायु मंद, सुगंधित और शीतलतायुक्त है जो सारी थकान हर लेती है।
प्रश्नः (ग)
मातृभूमि को ईश्वर का साकार रूप किस आधार पर बताया गया है?
उत्तर:
हमारी मातृभूमि ईश्वर का साकार रूप है क्योंकि सूर्य एवं चाँद इसके मुकुट के समान तथा शेषनाग का फल इसके सिंहासन जैसा है। बादल निरंतर इसका अभिषेक करते हैं और पक्षियों का समूह इसके यश का गुणगान करता है।
(9) सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुरगान
जगती के मन का खींच-खींच
निज छवि के रस से सींच-सींच
जेल कन्याएँ भोली अजान,
सागर के उर पर नाच-नाच करती है लहरें मधुरगान
प्रातः समीर से हो अधीर,
सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुरगान
करतल गत कर नभ की विभूति
पाकर शशि से सुषमानुभूति
तारांवलि-सी मृदु दीप्तिमान,
सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुरगान
तन पर शोभित नीला दुकूल
हैं छिपे हृदय में भाव फूल
छूकर पल-पल उल्लसित तीर,
कुसुमावलि-सी पुलकित महान,
सागर के उर पर नाच-नाच करती है लहरें मधुरगान
संध्या से पाकर रूचि रंग
करती सी शत सुर-चाप भंग
हिलती नव तरु-दल के समान,
आकर्षित करती हुई ध्यान,
सागर के उर पर नाच-नाच करती हैं लहरें मधुरगान
हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र में बँधे प्राण
सागर के उर पर नाच-नाच, करती हैं लहरें मधुरगान।
प्रश्नः (क)
जल कन्याएँ किन्हें कहा गया है? वे क्या कर रही हैं?
उत्तर:
जल कन्याएँ सागर की लहरों को कहा गया है। ये जल कन्याएँ अपनी सुंदरता से लोगों का मन अपनी ओर खींच रही हैं और सागर के हृदय पर मधुर गीत गाती फिर रही हैं।
प्रश्नः (ख)
प्रातः कालीन वायु का लहरों पर क्या असर हुआ है? उनके क्रिया कलाप को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
प्रातः कालीन वायु का स्पर्श पाकर लहरें अधीर हो उठी हैं। वे खुशी-खुशी किनारों को छूकर लौट जाती हैं। दूर से आती लहरों को देखकर ऐसा लगता है जैसे फूलों की बड़ी-सी कतार चली आ रही हैं। ये लहरें आनंदपूर्वक सागर के हृदय पर गान कर रही हैं।
प्रश्नः (ग)
लहरों का वस्त्र कैसा है? वे हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए क्या कर रही हैं?
उत्तर:
लहरों का वस्त्र नीला है। वे अपने हृदय में नाना प्रकार के भाव छिपाए, मधुर गीत गाती हुई सागर के सीने पर नाचती फिर रही हैं। इस तरह अपनी सुंदरता से लहरें हमारा ध्यान अपनी ओर खींच रही हैं।
(10) अंत समय आ गया पास था
उसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी।
धीरे-धीरे चला अकेले
सोचा साथ किसी को ले ले
फिर रह गया, सड़क पर सब थे
सभी मौन थे सही निहत्थे
सभी जानते थे यह उस दिन उसकी हत्या होगी।
खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर
दोनों हाथ पेट पर रख कर
सधे कदम रख करके आए
लोग सिमट कर आँख गड़ाए
लगे देखने उसको जिसकी तय था हत्या होगी।
निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथ तौलकर चाकू मारा
छूटा लोहू का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आखिर उसकी हत्या होगी?
प्रश्नः (क)
रामदास के उदासी का क्या कारण था?
उत्तर: रामदास की उदासी का कारण यह था कि उसे पता चल गया था कि उसका अंत समय आ गया है। उसे यह भी बता दिया गया था कि उसकी हत्या कर दी जाएगी। अपनी मृत्यु को अवश्यंभावी जानकर वह बहुत उदास था।
प्रश्नः (ख)
रामदास अपने साथ किसी को लेते-लेते क्यों रुक गया।
उत्तर: रामदास अपने साथ किसी को लेते-लेते इसलिए रुक गया था क्योंकि उसे पता था कि सड़क पर अकेला नहीं होगा। सड़क पर और भी बहुत से लोग होंगे जो उसे बचाने आगे आएँगे। इस तरह उसकी हत्या नहीं होने पाएगी।
प्रश्नः (ग)
सड़क पर हत्या होने से क्या मतलब है? इससे समाज के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
सड़क पर हत्या होने का मतलब है-हत्यारों को किसी का भय न होना तथा शहर में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज़ न होना। इससे समाज के बारे में यह पता चलता है कि लोग कितने संवेदनहीन हो चुके हैं। भय और आतंक के कारण उनकी संवेदना मर गई है।
(11) आज तक मैं यह समझ नहीं पाया
कि हर साल बाढ़ में पड़ने के बाद भी
लोग दियारा छोड़कर कोई दूसरी जगह क्यों नहीं जाते?
समुद्र में आता है तूफ़ान
तटवर्ती सारी बस्तियों को पोंछता
वापस लौट जाता है
और दूसरे ही दिन तट पर फिर
बस जाते हैं गाँव –
क्यों नहीं चले जाते ये लोग कहीं और?
हर साल पड़ता है सूखा
हरियरी की खोज में चलते हुए गौवों के खुर
धरती की फाँट में फँस-फँस जाते हैं
फिर भी कौन इंतज़ार में आदमी
बैठा रहता है द्वार पर,
कल भी आएगी बाढ़
कल भी आएगा तूफ़ान
कल भी पड़ेगा अकाल
आज तक मैं समझ नहीं पाया
कि जब वृक्ष पर एक भी पत्ता नहीं होता
झड़ चुके हैं सारे पत्ते
तो सूर्य डूबते-डूबते
बहुत दूर से चीत्कार करता
पंख पटकता
लौटता है पक्षियों का एक दल
उसी दूंठ वृक्ष के घोसलों में
क्यों? आज तक मैं समझ नहीं पाया।
प्रश्नः (क)
दियारा के संबंध में लोगों की किस स्वाभाविक विशेषता का उल्लेख है ? इससे क्या प्रकट होता है?
उत्तर:
दियारा अर्थात् नदी के किनारे के निचले क्षेत्र जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ आती है और वहाँ की फ़सलें, धन-धान्य और घर तबाह कर जाती है फिर भी लोग उसे छोड़कर अन्यत्र जाकर नहीं बसते हैं। इससे दियारा के प्रति लोगों का स्वाभाविक लगाव प्रकट होता है।
प्रश्नः (ख)
तूफ़ान आने के बाद तटीय इलाकों की स्थिति कैसी हो जाती है पर उनमें शीघ्र क्या बदलाव दिखाई देता है?
उत्तर:
तूफ़ान आने से तटीय इलाकों की स्थिति बदहाल हो जाती है। वहाँ पेड़-पौधे घर-मकान, रोजी-रोटी के साधन सभी कुछ नष्ट हो जाते हैं पर अगले दिन से ही वहाँ जन-जीवन सामान्य होने लगता है और फिर से सब कुछ पहले जैसा हो जाता है।
प्रश्नः (ग)
गायों के खुर कहाँ फँस जाते हैं और क्यों?
उत्तर:
गायों के खुर उन दरारों में फट जाते हैं जो धरती फटने से बनी हैं। भयंकर सूखे के कारण धरती में दरारें पड़ गईं है। गाएँ
हरी-हरी घास की तलाश में इधर-उधर भटक रही थी और उनका खुर इन दरारों में फँस गया।
(12) कितने ही कटुतम काँटे तुम मेरे पथ पर आज बिछाओ,
और अरे चाहे निष्ठुर कर का भी धुंधला दीप बुझाओ।
किंतु नहीं मेरे पग ने पथ पर बढ़कर फिरना सीखा है।
मैंने बस चलना सीखा है।
कहीं छुपा दो मंज़िल मेरी चारों ओर निमिर-घन छाकर,
चाहे उसे राख कर डालो नभ से अंगारे बरसाकर,
पर मानव ने तो पग के नीचे मंज़िल रखना सीखा है।
मैंने बस चलना सीखा है।
कब तक ठहर सकेंगे मेरे सम्मुख ये तूफ़ान भयंकर
कब तक मुझसे लड़ा पाएगा इंद्रराज का वज्र प्रखरतर
मानव की ही अस्थिमात्र से वज्रों ने बनना सीखा है।
मैंने बस चलना सीखा है।
प्रश्नः (क)
मानव के सामने क्या नहीं टिक पाता और क्यों?
उत्तर:
मानव के सामने भयंकर से भयंकर तूफ़ान भी नहीं टिक पाता है क्योंकि मनुष्य अपने अदम्य साहस व शक्ति के बल पर निडरता पूर्वक तूफ़ान से संघर्ष करता है और उस पर विजय पाता है।
प्रश्नः (ख)
साहसी मानव की मंजिल कहाँ रहती है और क्यों?
उत्तर:
साहसी मनुष्य की मंजिल उसके पैरों तले रहती है। उसकी इच्छा शक्ति के सामने प्राकृतिक आपदाएँ भी शरमा जाती हैं। वह अपनी मंजिल को अंधकार में से भी ढूँढ़कर निकाल लेता है।
प्रश्नः (ग)
‘अस्थिमात्र से वज्र बनना’ इस पंक्ति से किस कथा की ओर संकेत किया गया है।
उत्तर:
‘अस्थिमात्र से वज्र बनना’ इस पंक्ति से ऋषि दधीचि द्वारा मानवता की भलाई के लिए अपनी हड्डियाँ तक दान दे देने की ओर संकेत किया गया है। उनकी हड्डियों से बने वज्र द्वारा वृत्तासुर नामक राक्षस का वध किया गया था।
(13) जब गीतकार मर गया, चाँद रोने आया,
चाँदनी मचलने लगी कफ़न बन जाने को।
मलयानिल ने शव को कंधों पर उठा लिया,
वन ने भेजे चंदन-श्रीखंड जलाने को।
सूरज बोला, यह बड़ी रोशनीवाला था,
मैं भी न जिसे भर सका कभी उजियाली से,
रँग दिया आदमी के भीतर की दुनिया को
इस गायक ने अपने गीतों की लाली से!
बोला बूढ़ा आकाश ध्यान जब यह धरता,
मुझ में यौवन का नया वेग जग जाता था।
इसके चिंतन में डुबकी एक लगाते ही,
तन कौन कहे, मन भी मेरा रंग जाता था।
देवों ने कहा, बड़ा सुख था इसके मन की
गहराई में डूबने और उतराने में।
माया बोली, मैं कई बार थी भूल गयी
अपने को गोपन भेद इसे बतलाने में।
योगी था, बोला सत्य, भागता मैं फिरता,
यह जाल बढ़ाये हुए दौड़ता चलता था।
जब-जब लेता यह पकड़ और हँसने लगता,
धोखा देकर मैं अपना रूप बदलता था।
मर्दो को आयीं याद बाँकपन की बातें,
बोले, जो हो, आदमी बड़ा अलबेला था।
जिस के आगे तूफ़ान अदब से झुकते हैं,
उसको भी इसने अहंकार से झेला था।
प्रश्नः (क)
गीतकार के मरने पर उसकी अंत्येष्टि में किसने क्या-क्या योगदान दिया?
उत्तर:
गीतकार के मर जाने पर चाँद विलाप करने आया, चाँदनी उसका कफ़न बन जाना चाहती थी। मलय पर्वत से चलने वाली शीतल हवाओं ने उसे कंधे पर उठा लिया और कवि को जलाने के लिए जंगल ने चंदन और श्री खंड की लकड़ियाँ भेज दीं।
प्रश्नः (ख)
गीतकार के गीतों से आकाश किस तरह प्रभावित था?
उत्तर:
गीतकार के गीतों से आकाश बहुत ही प्रभावित था। कवि(गीतकार) के गीत सुनकर वह जवान हो जाता था। वह बाहर और भीतर से ऊर्जावान महसूस करने लगता है। कवि के बारे में सोचते हुए आकाश उसके गुणों में खो जाता था।
प्रश्नः (ग)
मर्दो ने गीतकार की किस तरह प्रशंसा की?
उत्तर:
मर्दो ने गीतकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि गीतकार बड़ा ही अलबेला आदमी था। जिसके आगे तूफ़ान भी झुकते थे उसको भी इस व्यक्ति ने गर्व के साथ झेला था। इस तरह कवि बहुत ही सहनशील और स्वाभिमानी व्यक्ति था।
(14) माँ अनपढ़ थीं
उसके लेखे
काले अच्छर भैंस बराबर
थे नागिन-से टेढ़े-मेढ़े
नहीं याद था
उस श्लोक स्तुति का कोई भी
नहीं जानती थी आवाहन
दुर्बल तन वृद्धावस्था का या कि विसर्जन देवी माँ का
नहीं वक्त था
ठाकुरवारी या शिवमंदिर जाने का भी
तो भी उसकी तुलसी माई
नित्य सहेज लिया करती थीं
निश्छल करुण अश्रु गीतों में
लिपटे-गुंथे दर्द को माँ के।
अकस्मात् बीमार हुई माँ
चौका-बासन गोबर-गोंइठा ओरियाने में
सुखवन लाने-ले जाने में
भीगी थीं सारे दिन जमकर
ऐसा चढ़ा बुखार
न उतरा अंतिम क्षण तक
झेल नहीं पाया प्रकोप
ज्वर का अतिभीषण
लकवा मारा, देह समूची सुन्न हो गई,
गल्ले वाले घर की चाभी
पहुँच गई ग्रेजुएट भाभी के
तार चढे मखमली पर्स में।
प्रश्नः (क)
‘काले अच्छर भैंस बराबर’ किसके लिए प्रयुक्त है और क्यों?
उत्तर:
‘काले अच्छर भैंस बराबर’ का प्रयोग कवि ने अपनी माँ के लिए किया है, क्योंकि उसकी माँ बिलकुल निरक्षर थी। वह अक्षर भी नहीं पहचानती थी।
प्रश्नः (ख)
‘माँ’ को मंदिर जाने का समय क्यों नहीं मिलता था?
उत्तर:
माँ को मंदिर जाने का समय नहीं मिलता था क्योंकि वह रसोई के कामों के अलावा गोबर के उपले बनाने, अनाज सुखाने साफ़ करने में सारा दिन व्यस्त रहती थी।
प्रश्नः (ग)
माँ किसकी पूजा करती थी? वह उसे क्या अर्पित करती थी?
उत्तर:
माँ तुलसी माई की पूजा करती थी। वह अपने दुखों को आँसुओं में लपेटकर निश्छल भाव से तुलसी माई को अर्पित कर दिया करती थी।
(15) निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
अहसहाय किसानों की किस्मत को खेतों में, क्या जल में बह जाते देखा है?
क्या खाएँगे? यह सोच निराशा से पागल, बेचारों को नीरव रह जाते देखा है?
देखा है ग्रामों की अनेक रम्भाओं को, जिनकी आभा पर धूल अभी तक छाई है?
रेशमी देह पर जिन अभागिनों की अब तक रेशम क्या, साड़ी सही नहीं चढ़ पाई है।
पर तुम नगरों के लाल, अमीरों के पुतले, क्यों व्यथा भाग्यहीनों की मन में लाओगे,
जलता हो सारा देश, किन्तु, होकर अधीर तुम दौड़-दौड़कर क्यों यह आग बुझाओगे?
चिन्ता हो भी क्यों तुम्हें, गाँव के जलने से, दिल्ली में तो रोटियाँ नहीं कम होती हैं।
धुलता न अश्रु-बूंदों से आँखों से काजल, गालों पर की धूलियाँ नहीं नम होती हैं।
जलते हैं ये गाँव देश के जला करें, आराम नयी दिल्ली अपना कब छोड़ेगी,
या रक्खेगी मरघट में भी रेशमी महल, या आँधी की खाकर चपेट सब छोड़ेगी,
या रक्खेगी मरघट में भी रेशमी महल, या आँधी की खाकर चपेट सब छोड़ेगी।
चल रहे ग्राम-कुंजों में पछिया के झकोर, दिल्ली, लेकिन, ले रही लहर पुरवाई में,
है विकल देश सारा अभाव के तापों से, दिल्ली सुख से सोई है नरम रजाई में।
प्रश्नः (क)
राजधानी में और ग्रामीण भारत में क्या अंतर है?
उत्तर:
राजधानी में नाना प्रकार की सुख-सुविधाएँ हैं। लोग इस सुख सुविधाओं का आनंद उठा रहे हैं जबकि दूसरी ओर ग्रामीण भारत में अनेक प्रकार के कष्ट हैं जिन्हें भोगते हुए ग्रामीण जी रहे हैं।
प्रश्नः (ख)
किसान और रंभाओं को देखकर कवि दुखी थ्यों होता है ?
उत्तर:
कवि देखता है कि किसानों की फ़सल बाढ़ में बह गई है। फ़सल बहने से किसान असहाय दुखी और परेशान हैं। इसी तरह ग्रामीण नवयुवतियाँ सौंदर्य की मूर्ति तो हैं पर उनके पास पूरा तन ढंकने को वस्त्र नहीं है। यह देखकर कवि दुखी होता है।
प्रश्नः (ग)
दिल्ली वासियों की हृदयहीनता को कवि ने किस तरह उभारा है?
उत्तर:
दिल्लीवासियों की हृदयहीनता को कवि ने उभारते हुए कहा है कि वे ग्रामीणों के दुख के बारे में नहीं सोचते हैं। गाँव वालों को दुखमुक्त करने के बारे में वे बिलकुल नहीं सोचते हैं। वे गाँव वालों का उपजाया अन्न खाते हैं पर उनकी चिंता नहीं करते हैं।